“स्ट्रीट फूड” : ज़रूरत भी, मुसीबत भी
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Gargi Nim
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Ramashankar Pandey
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By Journalism student
Posted By : Ramashanker Pandey
Photo By : Gargi Nim
दिल्ली का विकास जिस रफ़्तार से हो रहा है, उसी रफ़्तार से यहां “स्ट्रीट फूड” की खपत भी वढ़ती जा रही है । यहां की सड़कों पर लगी समोसे, छोले-कुलचे और खानें की दुकानों पर लोगों की अच्छी-खासी भीड़ होती है। लेकिन ज़रा सावधान ! अचानक ही आप शिकार हो रहे हैं खतरनाक बीमारियों के । यहां के खाने में मौजूद हो सकते हैं कई हानिकारक कीटाणु । इम्यून सिस्टम के कमज़ोर होते ही आप गिरफ़्त में आ सकते हैं टी.बी, हैज़ा जैसे जानलेवा बीमारियों के ।
क्या है “स्ट्रीट फूड” ?
संयुक्त राष्ट्र संघ के कृषि और खाद्य संगठन के अनुसार, “सड़कों और गलियों के किनारे लगी ब्रेड-पकौड़े, समोसे और खानें की दुकानें जहां खाद्य पदार्थों को इस तरह से तैयार किया जाता है कि लोग इसे फटाफट खा सकें” ।
“स्ट्रीट फूड” का बढ़ता चलन
दिल्ली के जंगपुरा के साही हॉस्पिटल में फिजिशियन डॉ. संजीव जुत्सी के मुताबिक, “विकासशील देशों में भी अब स्ट्रीट फूड और फास्ट फूड का चलन बढ़ता जा रहा है । अब लोग घर में खाना बनाने के बजाए बाहर का बना-बनाया खाना ही खाना पसंद करते हैं । इस गलाकाट प्रतियोगिता के दौर में लोगों के पास खाना बनाने का समय ही नहीं है । वहीं दूसरी ओर स्टूडेन्ट्स, पैसेंजर और कम आमदनी वाले भी इसे अपनी भूख शान्त करने का एक अच्छा विकल्प मानते हैं” । एक वर्ग ऐसा भी है जो इसके चटपटे स्वाद के कारण इनकी ओर खिंचा चला आता है ।
क्यों हैं खतरनाक ?
दिल्ली में जामिया नगर के अंसारी हेल्थ सेंटर के डॉ. इरशाद हुसैन का कहना है, “रोड के किनारे लगी इन दुकानों पर खाना बनाते समय साफ-सफाई का बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जाता है । जिस पानी का इस्तेमाल खाना बनाते समय करते हैं, वो साफ नहीं होता है । इसकी वजह से इन खाद्य उत्पादों में ‘इकोलाई’ और ‘साल्मोनेला’ जैसे जीवाणु होते हैं जो पेट व आंत संबंधी बीमारियों को जन्म देते है । यहां खाना खाने वालों को कभी-कभी ‘फूड प्वाइजनिंग’ भी हो जाती है” ।
इन दुकानों पर हाथ साफ करने के लिए साबुन वगैरह भी नहीं होता जिससे लोग खाने से पहले हाथ धो सकें । बर्तनों की सफाई पर ख़ास ध्यान नहीं दिया जाता है । खाने में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं में भी मिलावट होती है । इनके वेस्ट डिस्पोजल, पर्यावरण को नुकसान तो पहुंचाते ही है वहीं रोड के किनारे इनकी मौजूदगी यातायात को भी बाधित करती है ।
क्या है रास्ता ?
इसके लिए दुकानदार ही जिम्मेदार नहीं है । पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के बाहर खाने का ठेला लगाने वाले श्रीप्रकाश दुबे का कहना है, “म्यूनिसिपल ऑथारिटी न तो यहां के आस-पास के एरिया की सफाई पर ध्यान देती है और न ही साफ पानी की सप्लाई पर” ।
डॉ. जुत्सी ने इस बारे में कहा, “दिल्ली के म्यूनिसिपल ऑथारिटी को केवल उन्हीं दुकानदारों को खाना बेंचने का सर्टिफिकेट देना चाहिए जो साफ-सफाई और खाद्य सुरक्षा के सभी मापदण्डों को पूरा करते हों । और अगर ये इन मानकों पर खरा न उतरे तो इनके सर्टिफिकेट वापस ले लेने चाहिए । साथ ही ऑथरिटी को भी ऐसे एरिया के स्वच्छता पर ध्यान देना होगा” ।
हज़ारों लोगों को रोज़गार देने वाला “स्ट्रीट फूड” का व्यवसाय आज आम लोगों की ज़रूरत बन चुका है । साथ ही ख़तरनाक बीमारियों का घर भी । तो आगे से स्ट्रीट फूड को हाथ लगाने से पहले वहां की साफ-सफाई पर नज़र डालना न भूलें, नहीं तो ये आपके लिए मुसीबत भी खड़ी कर सकता है ।