एक बुक फेयर, फुटपाथ पर
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Babu
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Ramashankar Pandey
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By Journalism student
यूँ तो दिल्ली में हर साल अंतर्राष्ट्रीय बुक फेयर और दिल्ली बुक फेयर का आयोजन होता है लेकिन यहाँ एक जगह ऐसी भी है जहाँ हर हफ्ते ऐसा ही एक बुक फेस्टीवल होता है । हम बात कर रहे हैं पुरानी दिल्ली के दरियागंज में लगने वाले संडे बुक बाजार की । “दरियागंज अपने संडे बुक मार्केट के लिए न केवल एशिया बल्कि सारे विश्व में मशहूर है । यहाँ ज्यादातर किताबें सैकेण्ड हैंड ही होती हैं”। ऐसा कहना है जयप्रकाश गौड़ का जो पिछले 30 साल से यहाँ किताबें खरीदने आ रहें हैं । लेकिन एमसीडी के द्वारा 2009 तक इसे नई जगह पर ले जाने से ये काफी नाराज़ भी हैं । ट्रैफिक और अन्य समस्यायों के चलते इसे यहाँ से हटाया जाना है। इनका कहना है कि, “इससे एक तरफ जहाँ ग्राहकों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा वहीं दूसरी तरफ दरियागंज का ऐतिहासिक महत्व भी कम होगा”।
कितनी पुरानी है ये मार्केट
दरियागंज संडे बुक मार्केट के प्रेसीडेन्ट सुभाष चंद्र अग्रवाल बताते हैं, “ये मार्केट 1965 से यहाँ लग रही है । शुरूआत में ये दुकानें लाल किले के पीछे लगती थी। बाद में इसे दरियारंज शिफ्ट कर दिया गया और तब से ये दुकानें यहीं लग रही हैं”। 40 साल से यहाँ अपनी किताबों की दुकान लगाने वाले देवीदास दुबे का कहना है, “यहाँ आपको 50 साल से लेकर 200 साल पुरानी किताबें मिल जाएंगी जो आज दिखने में भी दुर्लभ हैं”।
हर तरह की किताबें हैं यहाँ
यहाँ मुंशी प्रेमचंद्र से लेकर सिडनी शेल्डन के नॉवेल, स्कूल, कॉलेज, टेक्निकल, मेडिकल, आर्ट एण्ड कल्चर, मैनेजमेन्ट इत्यादि की किताबें आपको मिल जाएंगी। इसके अलावा बच्चों और महिलाओं पर, कुकिंग, गार्डेनिंग, एग्रीकल्चर की किताबें भी यहाँ हैं । यहाँ फ्रेंच, जर्मन, रूसी, अरबी, फारसी भाषा में भी किताबें उपलब्ध हैं । आप यहाँ से निराश होकर नहीं जाएंगे बशर्ते आपके पास खोजी नजर हो और पैंरों में चलने की ताकत । हर तरह की किताबें यहाँ के पेवमेन्ट पर सजी हुई मिल जाएंगी वो भी आधे से भी कम कीमत पर ।
आखिर कहाँ से आती हैं ये किताबें
“इन किताबों के लिए हमें काफी मेहनत करनी पड़ती है । कुछ किताबें हम रद्दी वालों से खरीदते हैं तो कुछ लोग पुरानी किताबें को खुद हमारे पास बेंचने आते हैं । पब्लिशर्स के द्वारा रकम न मिलने से प्रेस वाले भी कम कीमतों पर हमें बेंच देते हैं । पब्लिशर्स से हम पुरानी किताब कम दाम पर खरीद लेते हैं” , सुभाष चंद्र अग्रवाल ने बताया । उन्होंने आगे कहा, “इन किताबों के लिए हम न केवल देश बल्कि विदेशों से भी संपर्क करते हैँ। अमेरिका और ब्रिटेन से भी पुरानी किताबें यहाँ आती हैं” ।
क्यों आते हैं यहाँ लोग
यहाँ लगी लगभग 200 दुकानों पर आप हर उम्र के लोगों को खरीददारी करते हुए देख सकते हैं । लेकिन यंगस्टर्स यहाँ ज्यादा ही दिखाई देते हैं । लोग यहाँ देश के कई हिस्सों से आते हैं। विदेशों से भी आए हुए लोगों को आप यहाँ किताबों को खोजते हुए देख सकते हैं।
यहाँ पर ज़्यादातर किताबें सैकेण्ड हैंड होती है और कुछ पाइरेटेड भी । इनकी कीमत काफी कम होती है । दरियागंज में ही एशिया की किताबों की सबसे बड़ी दुकान मानी जाने वाली ‘दिल्ली बुक सेंटर’ भी है । तो यहाँ इतनी मशक्कत करने के बजाए आप वहाँ से किताबें क्यों नहीं खरीद लेते हैं ? इसके जवाब में आईआईटी दिल्ली से इंजीनियरिंग कर रहे मुदित सिंह ने कहा, “ऐसी बहुत सी किताबें होती हैं जो वहाँ भी नहीं मिलती हैं और यहाँ काफी कम कीमत पर मिल जाती हैं । 5 – 5 हजार तक की कीमत वाली इंजीनियरिंग की कुछ किताबें यहाँ हजार रूपये में हमें मिल जाती हैं और पढ़ने के बाद हम इन्हें यहीं वापस बेंच देते हैं । जो महंगी किताबें अफोर्ड नहीं कर सकते उनकी ये पसंदीदा जगह है । यहाँ पर बड़े-बड़े लोग और नामचीन पब्लिशर्स भी दुर्लभ और पुरानी किताबों की खोज में आते हैं ।
सावधान रहना भी ज़रूरी
लेकिन ज़रा संभल के ! यहाँ पर खरीददारी करने के लिए आपको बारगेनिंग करने में भी पारंगत होना पड़ेगा । “आप यहाँ दुकानदारों के द्वारा बेवकूफ भी बनाए जा सकते हैं” । ऐसा कहना है आकाशवाणी में काम करने वाली प्रभा किरण जैन का । “यहाँ किताबें खरीदते समय इनकी जाँच- पड़ताल अच्छी तरह कर लेनी चाहिए । किताबें कभी-कभी अंदर से फटी हुई भी मिल सकती हैं” । इन्होंने आगे कहा , “अगर आप मोलभाव करने में माहिर हैं तो 200 रू. की नॉवेल आप 10 रू. में भी खरीद सकते हैं”।
एमसीडी बनाम संडे बुक मार्केट
इन दुकानों की वजह से यहाँ कभी-कभी ट्रैफिक की भी समस्या हो जाती है। ये जगह काफी कंजेस्टेड होने के नाते दिल्ली म्युनिसिपल कारपोरेशन इसे राजघाट या माता सुंदरी रोड पर ले जाने का प्लान बना रही है । लेकिन एमसीडी के निर्णय की मुखालफत करते हुए संडे बुक मार्केट के प्रेसीडेन्ट सुभाष चंद्र अग्रवाल का कहना है, “एमसीडी के इस निर्णय से हमारे रोज़गार पर काफी बुरा प्रभाव पड़ेगा। किसी भी नई जगह पर हमें अपना रोज़गार जमाने में कई साल लग जाएंगें”।
दिल्ली के मशहूर कबाड़ी बाज़ार को लाल किले से हटाकर राजघाट के पास पहुँचा दिया गया है और अब बारी है इस बुक मार्केट की । “हम कहीं भी रहें ग्राहकों का आना बदस्तूर जारी रहेगा”, ऐसा कहना है सुरेश चंद्र का जो यहाँ के पुराने दुकानदारों में से एक हैं । इस बुक मार्केट की ख़ासियत ये है कि आप यहाँ जितना चलेगें उतनी ही अच्छी किताबें पाएंगे । ये बुक मार्केट मोतियों से भरा एक सागर है लेकिन मोती चुनने की काबिलियत आप में होनी चाहिए।
रमाशंकर पाण्डेय
फोटो : बाबू